" आबशारों की याद आती है ,
फिर किनारों की याद आती है .
जो नहीं हैं मग़र उन्ही से हूँ ,
उन नज़ारों की याद आती है.
ज़ख्म पहले उभर के आते हैं ,
फिर हजारों की याद आती है.
आईने में निहार कर खुद को ,
कुछ इशारों की याद आती है .
आसमाँ की सियाह रातों को ,
अब सिंतारों की याद आती है.
शोर में कुछ भी याद क्या आये,
बस पुकारों की याद आती है ."
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