♣♣♣ " ऊपर जिसका अंत नहीं उसे आसमां कहते हैं, और नीचे जिसका अंत नहीं उसे माँ कहते हैं..."

Saturday, 28 April 2012

कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है...

छिप-छिप आशु बहाने वालों, मोती व्यर्थ लुटाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है.

सपना क्या है, नयन सेज पर सोया हुई आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से सावन नहीं मरा करता है.

माला बिखर गई तो क्या है, ख़ुद ही हल हो गई समस्या
आँसू ग़र नीलाम हुए तो, समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फ़टी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आंगन नहीं मरा करता है.

लाखों बार गगरियाँ फूटीं, शिक़न नहीं आई पनघट पर
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं, चहल-पहल वो ही है तट पर
तम की उमर बढ़ाने वालों, लौ की आयु घटाने वालों
लाख करे पतझड़ क़ोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है.

लूट लिया माली ने उपवन, लुटी न लेकिन गंध फूल की
तूफ़ानों तक ने छेड़ा पर, खिड़की बंद न हुई धूल की
नफ़रत गले लगाने वालों, सब पर धूल उड़ाने वालों
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से, दर्पण नहीं मरा करता है.

Tuesday, 7 February 2012

एक छोटी कहानी ....


ज का दिन मेरे लिए कुछ खास तो नहीं, लेकिन सोचा एक छोटी कहानी ही लिख दूँ...
लोगो को अक्सर मैंने कहते सुना है की मेरे पास समय नहीं है पिताजी या माताजी .. या फिर.. मै आपके लिए कुछ भी कर पाने में असमर्थ हूँ...इत्यादि...इत्यादि...|||
लेकिन करने वालो के लिए दुनिया में बहुत कुछ है.. जो हम सोच भी नहीं पाते...


*** एक बूढ़े किसान बाबा ने अपने जेल में बंद बेटे को ख़त लिखा:
" बेटा मै आलू की फसल नहीं बो सकता, इतना बड़ा खेत मुझसे नहीं खुदेगा| काश तू मेरी मदद कर पाता |"
बेटे ने वापस जवाब दिया:
"पिताजी आप खेत मत खोदना, क्युकी मैंने वह हथियार छुपा रखे है |"
बेटे द्वारा भेजा जाने वाला ख़त पढ़ा गया तो पुलिस अवाक् रह गयी |
अगले दिन पुलिस फ़ोर्स ने सारा खेत खोद दिया, मगर हथियार नहीं मिले|
दुसरे दिन बेटे ने फिर पिता को ख़त लिखा:
" पिता जी यहाँ से मै आपकी इतनी ही मदद कर पाउँगा, अब आप आलू की फसल बो सकते है |"


कहानी तो खत्म हो गयी, लेकिन सोचने को काफी कुछ छोड़ गयी | ऐसा नहीं की ये कहानी काल्पनिक है, ये एक आम आदमी के जीवन के कुछ पल है जिसके पास कुछ ना कर पाने की असमर्थता का कोई बहाना नहीं है|

--
"आशु"

खुशहाली में इक बदहाली, तू भी है ......."


खुशहाली में इक बदहाली, तू भी है और मैं भी हूँ
हर निगाह पर एक सवाली, तू भी है और मै भी हूँ
दुनियां कुछ भी अर्थ लगाये,हम दोनों को मालूम है
भरे-भरे पर ख़ाली-ख़ाली , तू भी है और मै भी हूँ......."

Tuesday, 17 January 2012

इस से पहले कि सजा मुझ को मुक़र्रर हो जाये ....


इस से पहले कि सजा मुझ को मुक़र्रर हो जाये 
उन हंसी जुर्मों कि जो सिर्फ मेरे ख्वाब में हैं ,
इस से पहले कि मुझे रोक ले ये सुर्ख सुबह 
जिस कि शामों के अँधेरे मेरे आदाब में हैं ,
अपनी यादों से कहो छोड़ दें तनहा मुझ को 
मैं परीशाँ भी हूँ और खुद में गुनाहगार भी हूँ 
इतना एहसान तो जायज़ है मेरी जाँ मुझ पर 
मैं तेरी नफरतों का पाला हुआ प्यार भी हूँ ...."


-डॉ. कुमार विश्वास

Thursday, 12 January 2012

‎" आबशारों की याद आती है , ...


‎" आबशारों की याद आती है ,
फिर किनारों की याद आती है .
जो नहीं हैं मग़र उन्ही से हूँ ,
उन नज़ारों की याद आती है. 
ज़ख्म पहले उभर के आते हैं ,
फिर हजारों की याद आती है. 
आईने में निहार कर खुद को ,
कुछ इशारों की याद आती है .
आसमाँ की सियाह रातों को ,
अब सिंतारों की याद आती है. 
शोर में कुछ भी याद क्या आये, 
बस पुकारों की याद आती है ."

Monday, 9 January 2012

इल्म बड़ी दौलत है...


"इल्म बड़ी दौलत है
तू भी स्कूल खोल
इल्म पढ़ा
फीस लगा
दौलत कमा
फीस ही फीस
पढाई के बीस
बस के तीस
यूनीफार्म के चालीस
खेलों के अलग
ये वैराइटी प्रोग्राम के अलग
लोगों के चीखने पर ना जा
दौलत कमा
उससे और स्कूल खोल
उससे और दौलत कमा
कमाए जा ...कमाए जा ..."

Wednesday, 4 January 2012

लेकिन मेरा लावारिस दिल...


मस्जिद तो अल्लाह की ठहरी 
मंदिर राम का निकला
लेकिन मेरा लावारिस दिल
अब जिस की जंबील में कोई ख्वाब 
कोई ताबीर नहीं है
मुस्तकबिल की रोशन रोशन
एक भी तस्वीर नहीं है
बोल ए इंसान, ये दिल, ये मेरा दिल
ये लावारिस, ये शर्मिन्दा शर्मिन्दा दिल
आख़िर किसके नाम का निकला 
मस्जिद तो अल्लाह की ठहरी
मंदिर राम का निकला
बंदा किसके काम का निकला
ये मेरा दिल है
या मेरे ख़्वाबों का मकतल
चारों तरफ बस खून और आँसू, चीखें, शोले
घायल गुड़िया
खुली हुई मुर्दा आँखों से कुछ दरवाजे
खून में लिथड़े कमसिन कुरते
जगह जगह से मसकी साड़ी
शर्मिन्दा नंगी शलवारें
दीवारों से चिपकी बिंदी
सहमी चूड़ी 
दरवाजों की ओट में आवेजों की कबरें
ए अल्लाह, ए रहीम, करीम, ये मेरी अमानत
ए श्रीराम, रघुपति राघव, ए मेरे मर्यादा पुरुषोत्तम
ये आपकी दौलत आप सम्हालें
मैं बेबस हूँ
आग और खून के इस दलदल में
मेरी तो आवाज़ के पाँव धँसे जाते हैं।