♣♣♣ " ऊपर जिसका अंत नहीं उसे आसमां कहते हैं, और नीचे जिसका अंत नहीं उसे माँ कहते हैं..."

Friday, 19 August 2011

सनसनीखेज: गज़ब ईमानदारी का गज़ब खुलासा...!!!!!

भ्रष्टाचार के खिलाफ चलने वाली मुहिम में अब एक नया मोड़ आन खड़ा हुआ है | मैं यहाँ ना तो अन्ना जी को सपोर्ट कर रहा हु और ना ही सरकार की इस दोहरी राजनीती के ही समर्थन में हूँ | क्यूंकि इस देश को अपने स्वार्थ के लिए बेच देना इनके लिए कोई बड़ी बात नहीं है| चूँकि इस देश को हम अपनी माँ का दर्जा देते है, इसे पूजते है, शरहद पर लड़ने वाले बाशिंदों में एक जज्बा होता है की वो अपनी माँ की आन पर कभी कोई आंच नहीं आने देंगे | मगर हम किस मातृभूमि की रक्षा के लिए शपथ खाएं | क्या आज़ादी और देश विभाजन के बाद का हिन्दुस्तान ऐसा होना चाहिए था, जहा लोकतंत्र होते हुए भी आरक्षण के आधार पर विद्यार्थियों के बीच जाती-वाद की नींव रखी जाती है| खैर, अन्ना की इंडिया अगेंस्ट करप्सन की यह निति कहाँ तक सही है, यह आप ही बताइए | मेरे ख्याल से तो गलत सदैव गलत ही होता है चाहे वह थोडा हो या ज्यादा...


एक रिपोर्ट:

          रामलीला मैदान में अभी-अभी खत्म हुई प्रेस कांफ्रेंस में अरविन्द केजरीवाल और प्रशांत भूषण ने साफ़ और स्पष्ट जवाब देते हुए लोकपाल बिल के दायरे में NGO को भी शामिल किये जाने की मांग को सिरे से खारिज कर दिया है. विशेषकर जो NGO सरकार से पैसा नहीं लेते हैं उनको किसी भी कीमत में शामिल नहीं करने का एलान भी किया. ग्राम प्रधान से लेकर देश के प्रधान तक सभी को लोकपाल बिल के दायरे में लाने की जबरदस्ती और जिद्द पर अड़ी अन्ना टीम NGO को इस दायरे में लाने के खिलाफ शायद इसलिए है, क्योंकि अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया,किरण बेदी, संदीप पाण्डेय ,अखिल गोगोई और खुद अन्ना हजारे भी केवल NGO ही चलाते हैं. अग्निवेश भी 3-4 NGO चलाने का ही धंधा करता है. और इन सबके NGO को देश कि जनता की गरीबी के नाम पर करोड़ो रुपये का चंदा विदेशों से ही मिलता है.इन दिनों पूरे देश को ईमानदारी और पारदर्शिता का पाठ पढ़ा रही ये टीम अब लोकपाल बिल के दायरे में खुद आने से क्यों डर/भाग रही है.भाई वाह...!!! क्या गज़ब की ईमानदारी है...!!!

इन दिनों अन्ना टीम की भक्ति में डूबी भीड़ के पास इस सवाल का कोई जवाब है क्या.....?????

जहां तक सवाल है सरकार से सहायता प्राप्त और नहीं प्राप्त NGO का तो मैं बताना चाहूंगा कि....

भारत सरकार के Ministry of Home Affairs के Foreigners Division की FCRA Wing के दस्तावेजों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2008-09 तक देश में कार्यरत ऐसे NGO's की संख्या 20088 थी, जिन्हें विदेशी सहायता प्राप्त करने की अनुमति भारत सरकार द्वारा प्रदान की जा चुकी थी.इन्हीं दस्तावेजों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2006-07, 2007-08, 2008-09 के दौरान इन NGO's को विदेशी सहायता के रुप में 31473.56 करोड़ रुपये प्राप्त हुये. इसके अतिरिक्त देश में लगभग 33 लाख NGO's कार्यरत है.इनमें से अधिकांश NGO भ्रष्ट राजनेताओं, भ्रष्ट नौकरशाहों, भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों, भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों के परिजनों,परिचितों और उनके दलालों के है. केन्द्र सरकार के विभिन्न विभागों के अतिरिक्त देश के सभी राज्यों की सरकारों द्वारा जन कल्याण हेतु इन NGO's को आर्थिक मदद दी जाती है.एक अनुमान के अनुसार इन NGO's को प्रतिवर्ष न्यूनतम लगभग 50,000.00 करोड़ रुपये देशी विदेशी सहायता के रुप में प्राप्त होते हैं.

 इसका सीधा मतलब यह है की पिछले एक दशक में इन NGO's को 5-6 लाख करोड़ की आर्थिक मदद मिली. ताज्जुब की बात यह है की इतनी बड़ी रकम कब.? कहा.? कैसे.? और किस पर.? खर्च कर दी गई. इसकी कोई जानकारी उस जनता को नहीं दी जाती जिसके कल्याण के लिये, जिसके उत्थान के लिये विदेशी संस्थानों और देश की सरकारों द्वारा इन NGO's को आर्थिक मदद दी जाती है. इसका विवरण केवल भ्रष्ट NGO संचालकों, भ्रष्ट नेताओ, भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों, भ्रष्ट बाबुओं, की जेबों तक सिमट कर रह जाता है.

भौतिक रूप से इस रकम का इस्तेमाल कहीं नज़र नहीं आता. NGO's को मिलने वाली इतनी बड़ी सहायता राशि की प्राप्ति एवं उसके उपयोग की प्रक्रिया बिल्कुल भी पारदर्शी नही है. देश के गरीबों, मजबूरों, मजदूरों, शोषितों, दलितों, अनाथ बच्चो के उत्थान के नाम पर विदेशी संस्थानों और  देश में केन्द्र एवं राज्य सरकारों के विभिन्न सरकारी विभागों से जनता की गाढ़ी कमाई के दसियों हज़ार करोड़ रुपये प्रतिवर्ष लूट लेने वाले NGO's की कोई जवाबदेही तय नहीं है. उनके द्वारा जनता के नाम पर जनता की गाढ़ी कमाई के भयंकर दुरुपयोग की चौकसी एवं जांच पड़ताल तथा उन्हें कठोर दंड दिए जाने का कोई विशेष प्रावधान नहीं है.
 लोकपाल बिल कमेटी में शामिल सिविल सोसायटी के उन सदस्यों ने जो खुद को सबसे बड़ा ईमानदार कहते हैं और जो स्वयम तथा उनके साथ देशभर में india against corruption की मुहिम चलाने वाले उनके अधिकांश साथी सहयोगी NGO's भी चलाते है लेकिन उन्होंने आजतक जनता के नाम पर जनता की गाढ़ी कमाई के दसियों हज़ार करोड़ रुपये प्रतिवर्ष लूट लेने वाले NGO's के खिलाफ आश्चार्यजनक रूप से एक शब्द नहीं बोला है, NGO's को लोकपाल बिल के दायरे में लाने की बात तक नहीं की है.
इसलिए यह आवश्यक है की NGO's को विदेशी संस्थानों और देश में केन्द्र एवं राज्य सरकारों के विभिन्न सरकारी विभागों से मिलने वाली आर्थिक सहायता को प्रस्तावित लोकपाल बिल के दायरे में लाया जाए |


♣♣♣ देखते हैं! क्या होता है इस देश का ???

एक गाँधी देश बांटकर चले गए नेहरू प्रेम में... और अब पूरा देश बंट रहा है...

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7 comments:

  1. बहुत सही कहा सर आपने .....सभी लोग मैं की दौड़ में हैं । मैं भी ये तो नहीं कहती की कौन सही है या कौन गलत बस इतना जरूर कहना चाहूंगी कि अगर बदलना ही है तो ये लोग खुद को बदलें ..भ्रस्टाचार हो अपने आप ही मिट जायेगा। मेरा सवाल ये है कि इस बात की जिमेदारी कौन लेगा की अगर लोकपाल बिल लागु हो जाय तो भ्रस्टाचार ख़त्म हो जायेगा.... क्या अन्ना हजारे...या कोई और....?

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  2. कल जो अरविंद केजरीवाल ने कहा आप ने उसे ठीक से ना सुना और ना ही समझा | एक कानून जो सरकारी कर्मचारी पर लागु होता है वही कानून एक निजी कर्मचारी पर लागु नहीं हो सकता है | जिस लोकपाल की बात अभी हो रही है वो केवल और केवल सरकारी और सरकार द्वारा संचालित चीजो पर ही लागु होगा उसमे हम यदि प्राइवेट सेक्टर को भी डाल देंगे तो लोकपाल का काम बहुत ही ज्यादा हो जायेगा और दो कानूनों का घालमेल भी हो जायेगा इसलिए उन्होंने कहा की ये लोकपाल सरकारी कामो के लिए हो और सरकार के बाहर जो लोग भ्रष्टाचार कर रहे है जिनमे एन जो ओ ही नहीं कार्पोरेट वर्ग और वकील भी है तो उन सभी के लिए जो सरकार से बाहर तो है किन्तु भ्रष्टाचार वो भी करते है उनके लिए एक अलग बिल बनाया जाये और उनके भ्रष्टाचार पर भी लगाम लगाया जाये इनमे हर एक एन जी ओ शामिल होगा उनका अपना भी |

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  3. भ्रष्टाचार के लिए सरकारी और गैरसरकारी लोगों पर एक ही कानून लागु नहीं होता है आज भी यही नियम है | सरकारी आदमी सरकार के पैसे हमारे पैसे का घोटाला कर रहा है जबकि निजी कंपनी में काम करने वाला किसी की निजी संपत्ति का नुकसान कर रहा है उसके लिए सरकार कुछ भी नहीं कर सकती है उसके लिए वो व्यक्ति कानून के पास जा सकता है | पर भ्रष्टाचार वहा भी है और सरकार को प्रभावित करने का काम भी किया जाता है इसीलिए उसके लिए अलग कानून बनेगा और वो भी इस लिस्ट में है वहा भी सरकार का ही अडंगा है क्योकि आप जानते है की एन जो ओ के नाम पर वो कितने पैसे इधर उधर करती है और लोग ठगे जाते है | किसी ने भी सरकार को मना नहीं किया है इस बारे में कानून बनाने के लिए वो जब चाहे कानून बना सकती है | इसके आलावा आज के समय में आयकर विभाग भी कार्यवाही
    कर सकती है पर नहीं करती वही भ्रष्टाचार | ये तो आप सरकार से पूछिये की वो क्यों नहीं बना रही है |

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  4. अंशुमाला जी ने स्पष्ट कर हि दिया है, ज्यादा कुछ बोलने की ज़रूरत नहीं रही, ngo के खिलाफ तो बिना लोकपाल बिल के भी कार्यवाही की जा सकती।

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  5. अंशुमाला जी मैं कोई राजनीतिज्ञ नहीं हूँ, जो शब्दों से खेलू... इस हिन्दुस्तान में रहने वाली एक अरब बाईस करोड़ की आबादी में से एक, सीधा साधा आम आदमी हूँ, और सीधी साधी बात ही मुझे समझ में आती है, सामान्य वर्ग से हूँ, गाँव की मिटटी ही मेरी जन्मभूमि और कर्मभूमि है | एक पुरानी कहावत है अंशुमाला जी, की मुंह बदलते ही बात के अर्थ बदल जाते हैं. मैं अन्ना जी या अरविन्द जी पर दोषारोपण नहीं कर रहा हूँ, क्यूंकि कोई भी देश परफेक्ट नहीं होता, उसे बनाना पड़ता है, समस्या ये नहीं की लोकपाल बिल पारित होने से क्या होगा, समस्या ये है की सत्ता में बैठने वालों को सही रास्ते पर लाया कैसे जाये...
    आप बात कर रहे हो भ्रष्टाचार की, तो आप ही हमे बताइए की हिन्दुस्तान दो भागो में क्यों बटा, आज़ादी के बाद, संविधान लागू हुआ, और लोकतंत्र की स्थापना हुयी, फिर ये आरक्षण जैसी निति कहा से आ गयी | बुरा मत मानियेगा अंशुमाला जी, ऐसे हजारों सवाल हम हिन्दुस्तानियों के जेहन में हैं, की क्यों हम एक होकर भी बिखरे - बिखरे है, क्यों अपने निजी स्वार्थों के लिए सदैव हमारा शोषण किया जाता है, आप इस लिंक पर दिए गए सवालों का जबाब दीजिए,

    http://ashu4ever4u.blogspot.com/2011/08/blog-post_21.html

    हम किसान है, खेतों में हमे हल चलाना आता है, तो हममे से ही निकलने वाले लोग अन्ना जी या केजरीवाल साहेब बनते है, शब्दों पर तर्क बहुत होते हैं, समस्या का निराकरण ढूढ़ा जाये, चलिए आपके जबाबो के बाद हम आपको इस देश का प्रिम मिनिस्टर बनाना चाहेंगे.... बस सुधार होना चाहिए,....

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  6. बस हम तो इतना जाने पीर पराई कोई ना जाने -बस सभी लोग
    अपने अपने चकर में पड़े है

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