♣♣♣ " ऊपर जिसका अंत नहीं उसे आसमां कहते हैं, और नीचे जिसका अंत नहीं उसे माँ कहते हैं..."

Tuesday 28 June 2011

अकलमंद पुत्रवधू -बाल कहानियाँ



बाल कहानियाँ
एक किसान था। इस बार फसल कम होने की वजह से चिंतित था। घर में राशन ग्यारह महीने चल सके उतना ही था। बाकी एक महीने का राशन कैसे लायेगा, कहाँ से इसका इंतजाम होगा यह चिंता उसे बार-बार सता रही थी। 

किसान की पुत्रवधू ने यह ध्यान दिया कि पिताजी किसी बात को लेकर परेशान है। पुत्रवधू ने किसान से पूछा कि - "क्या बात है, पिताजी ? आप इतना परेशान क्यों है ?" 

तब किसान ने अपनी चिंता का कारण पुत्रवधू को बताया कि - "इस साल फसल कम होने कि वजह से ग्यारह महीने चल सके उतना ही राशन है। बाकी एक महिना कैसे गुजरेगा यही सोच रहा है ?" 

किसान की यह बात सुनकर पुत्रवधू ने थोडा सोचकर कहा - "पिताजी, आप चिंता ना करे, बेफिक्र हो जाए, उसका इंतजाम हो जायेगा।" 

ग्यारह महीने बीत गए, अब बारहवा महिना भी आराम से पसार हो गया। किसान सोच में पड़ गया कि - "घर में अनाज तो ग्यारह महीने चले उतना ही था, तो ये बारहवा महिना आराम से कैसे गुजरा ?"

किसान ने अपनी पुत्रवधू को बुलवाकर पूछा - "बेटी, ग्यारह महीने का राशन बारहवे महीने तक कैसे चला ? यह चमत्कार कैसे हुआ ?" 

तब पुत्रवधू ने जवाब दिया कि - "पिताजी, राशन तो ग्यारह महीने चले उतना ही था। किन्तु, जिस दिन आपने अपनी चिंता का कारण बताया... उसी दिन से रसोई के लिए जो भी अनाज निकालती उसी में से एक-दो मुट्ठी हररोज वापस कोठी में दाल देती। बस उसी की वजह से यह बारहवे महीने का इंतजाम हो गया। और बिना तकलिफ़ के बारहवा महिना आराम से गुजर गया।" 

किसान ने यह बात सुनी तो दंग सा रह गया । और अपनी पुत्रवधू की बचत समझदारी की अकलमंदी पर गर्व करने लगा।








सौजन्य :-
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