♣♣♣ " ऊपर जिसका अंत नहीं उसे आसमां कहते हैं, और नीचे जिसका अंत नहीं उसे माँ कहते हैं..."

Saturday 27 August 2011

रोचक हास्य: "प्रधानमंत्री निकम्मा है ."


एक बार एक आम आदमी जोर जोर से चिल्लारहा था, "प्रधानमंत्री निकम्मा है ."


पुलिस के एक सिपाही ने सुना और उस की गर्दन पकड़ के दो रसीद किये और बोला, "चल थाने, प्रधानमंत्री की बेइज्ज़ती करता है?"


वो बोला, "साहब मै तो कह रहा था फ़्रांस का प्रधानमंत्री निकम्मा है."


ये सुन कर सिपाही ने दो और लगाए और बोला, "साले,बेवक़ूफ़ बनता है! क्या हमे नहीं पता कहाँका प्रधानमंत्री निकम्मा है?"


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*** है ध्येय हमारा दूर सही पर साहस भी तो क्या कम है
हम राह अनेको साथी है कदमो मे अंगद का दम है
असुरो की लन्का राख करे वह आग लगाने आते है ॥
पग पग पर काटे बिछे हुये व्यवहार कुशलता हम मे है
विश्वास विजय का अटल लिये निष्ठा कर्मठता हम मे है
विजयी पुरखों की परम्परा अनमोल हमारी थाती है ॥..***!!!!!!


************एक भारतीय ********************

Sunday 21 August 2011

सनसनीखेज: क्या वाकई सरकार अन्ना के सामने झुक गई है ?....!!!!!

    म जानते हैं की समाज में जब भी परिवर्तन की नींव डालने की कोशिशे की गयी हैं, उसके विरोधाभाष में कुछ न कुछ समस्याए जरुर आई हैं | मैं यहाँ अन्ना जी, बाबा रामदेव या कांग्रेस का न ही समर्थन कर रहा हु और ना ही उनको विरोध | किन्तु एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही कि, क्या वाकई सरकार अन्ना के सामने झुक गई है ? 
और अगर ऐसी बात है तो फ़िर अनशन किसलिये हो रहा है ? 

सरकार अन्ना के जन लोकपाल को स्विकार क्यो नही करती ? 

15 दिन के बाद सरकार मान जायेगी ? 

15 दिन के बाद क्या होगा ? 

अगर सरकार 15 के दिन के बाद उनकी बात मान सकती है तो अब क्यो नही मान लेती ?

क्यों इतने बडे जन सैलाब को कष्ट दे रही है ?

 एक बात यह भी देखिये की, उसी रामलिल मैदान के लिये राजी है, जहां स्वामी रामदेव जी ने अनशन की इजाजत मांगी थी । यह दोगला व्यवहार क्यो ? 
निचे दिए गए पहलुओ पर तनिक विचार करें...
कि, कही हम इस जनलोकपाल के चक्कर में कालेधन का मुद्दा और कांग्रेस के घोटाले वाले कारनामे भुल न जाये। मुझे नही लगता की, आम गरीब किसान जो आत्महत्या करने के कगार पर आ चुका है, वह जन लोकपाल के पास जाकर शिकायत कर पायेगा या उसकी भुखमरी और बेरोजगारी मिट जायेगी।


लोकायुक्त पहले भी नियुक्त किये जा चुके है और भ्रष्ट्राचार निवारण एजन्सीयां बनी हुई है। कोई उनके पास शिकायत करने नही जाता। यही हाल लोकपाल के साथ होगा।

यहाँ एक बात तो स्पस्ट दिखती है सरकार ने बाबा रामदेव को ४ जून को दिल्ही से हरिद्वार पहुँचाकर मीडिया को भारत निर्माण के नाम से चुप कर दिया. सरकार चाहती तो अन्ना हजारे के विषय में मिडिया को चुप करा कर रोक सकती थी पर सरकार ने ही राम लला मैदान की साफ सफाई कराकर आन्दोलन को और भी सफल बनाया जबकि बाबा रामदेव के समय मैदान में टेंकर की मदत से पानी डाल कर कीचड़ बनाने का प्रयाश किया गया. दाल में जरुर कुछ काला है.    

मेरे जेहन में कुछ सवाल है कोई मेरे इन सवालो का जबाब दे सकता है तो कह सकते हैं की अन्ना का समर्थन जायज है............

१- क्यों अन्ना ने भारत माता की तस्बीर का अपमान करके दूसरी तस्बीर बनायीं? 

२- क्यों अन्ना बाबा को मंच पर ना आने की सलाह देता है?

३- क्यों नहीं अभी कोई कोंग्रेस्सी पिल्ला भोंक रहा है अन्ना पर? कहाँ गया दिग्गी?

४- क्यों मीडिया अन्ना के अनसन को अगस्त क्रांति का नाम दे रही है जबकि इसी मीडिया ने बाबा के अनसन को ढोंग साबित करके उन्हें ढोंगी करार दिया?

५- अन्ना को इतना जन समर्थन मिल रहा है तो क्यों नहीं वो स्वदेशी और काले धन (स्विस बेंक में जमा काला धन) को भारत में लाने की मांग कर रहे हैं.?

६- अगर अन्ना को भगवा से इतनी नफरत है तो क्यों उन्होंने देशद्रोही मौलाना अग्निवेश को अपनी टीम का सदस्य बनाया है और रामदेव को समर्थन ना करने की सलाह देते हैं.?

७- क्या कभी अन्ना ने किसी कोंग्रेस्सी को निशाना बनाया है?

८- क्यों अन्ना गुजरात में जाकर मोदी के शासन की उपेक्षया करते हैं: कहते है गुजरात में शराब की बाढ़ बहती है लेकिन महारास्ट्र में उनको शराब तक की बू नहीं आती है?

९- क्यों नहीं अन्ना महारास्ट्र में किसानो की हो रही आत्महत्या पर चुप बैठे हैं? क्यों नहीं वो महारास्ट्र  सरकार (कोंग्रेस) को आईना दिखा रहे हैं?

१०- क्यों ngo को लोकपाल बिल के दायरे में नहीं लाना चाहते हैं?

११- अन्ना ने अब भारत माता की फोटो हटाकर गाँधी की फोटो लगा दी है क्यों? वे भारत माता के साथ साथ गाँधी जी की और दुसरे क्रन्तिकारी की भी फोटो लगा सकते थे. पर इसके लिए भारत माता की फोटो हटाने की क्या जरुरत पड़ी.

अगर आप पिछले कुछ दिनों से आज तक जैसे चेनल पर गौर करेंगे तो पता चलेगा की कैसे किशी को हीरो बनाये और कैसे किसीको जीरो.

 मिडिया सम्पूर्ण रित से पैसो के लिए कार्य कर्ता है. यह वही दिखाता है जो सरकार चाहती है.

जब तक सम्पुर्ण व्यवस्था परिवर्तन के लिये आंदोलन नही होता और उसमे सफ़लता नही मिलती तब तक सत्ता पर बैठे हुए भेडिये जनता का युं ही खुंन चुंसते रहेंगे।

हमे हमारा ''भारत ''चाहिये,'' इण्डिया'' नही, जो वास्तव मे गांवों मे बसता है।

Friday 19 August 2011

सनसनीखेज: गज़ब ईमानदारी का गज़ब खुलासा...!!!!!

भ्रष्टाचार के खिलाफ चलने वाली मुहिम में अब एक नया मोड़ आन खड़ा हुआ है | मैं यहाँ ना तो अन्ना जी को सपोर्ट कर रहा हु और ना ही सरकार की इस दोहरी राजनीती के ही समर्थन में हूँ | क्यूंकि इस देश को अपने स्वार्थ के लिए बेच देना इनके लिए कोई बड़ी बात नहीं है| चूँकि इस देश को हम अपनी माँ का दर्जा देते है, इसे पूजते है, शरहद पर लड़ने वाले बाशिंदों में एक जज्बा होता है की वो अपनी माँ की आन पर कभी कोई आंच नहीं आने देंगे | मगर हम किस मातृभूमि की रक्षा के लिए शपथ खाएं | क्या आज़ादी और देश विभाजन के बाद का हिन्दुस्तान ऐसा होना चाहिए था, जहा लोकतंत्र होते हुए भी आरक्षण के आधार पर विद्यार्थियों के बीच जाती-वाद की नींव रखी जाती है| खैर, अन्ना की इंडिया अगेंस्ट करप्सन की यह निति कहाँ तक सही है, यह आप ही बताइए | मेरे ख्याल से तो गलत सदैव गलत ही होता है चाहे वह थोडा हो या ज्यादा...


एक रिपोर्ट:

          रामलीला मैदान में अभी-अभी खत्म हुई प्रेस कांफ्रेंस में अरविन्द केजरीवाल और प्रशांत भूषण ने साफ़ और स्पष्ट जवाब देते हुए लोकपाल बिल के दायरे में NGO को भी शामिल किये जाने की मांग को सिरे से खारिज कर दिया है. विशेषकर जो NGO सरकार से पैसा नहीं लेते हैं उनको किसी भी कीमत में शामिल नहीं करने का एलान भी किया. ग्राम प्रधान से लेकर देश के प्रधान तक सभी को लोकपाल बिल के दायरे में लाने की जबरदस्ती और जिद्द पर अड़ी अन्ना टीम NGO को इस दायरे में लाने के खिलाफ शायद इसलिए है, क्योंकि अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया,किरण बेदी, संदीप पाण्डेय ,अखिल गोगोई और खुद अन्ना हजारे भी केवल NGO ही चलाते हैं. अग्निवेश भी 3-4 NGO चलाने का ही धंधा करता है. और इन सबके NGO को देश कि जनता की गरीबी के नाम पर करोड़ो रुपये का चंदा विदेशों से ही मिलता है.इन दिनों पूरे देश को ईमानदारी और पारदर्शिता का पाठ पढ़ा रही ये टीम अब लोकपाल बिल के दायरे में खुद आने से क्यों डर/भाग रही है.भाई वाह...!!! क्या गज़ब की ईमानदारी है...!!!

इन दिनों अन्ना टीम की भक्ति में डूबी भीड़ के पास इस सवाल का कोई जवाब है क्या.....?????

जहां तक सवाल है सरकार से सहायता प्राप्त और नहीं प्राप्त NGO का तो मैं बताना चाहूंगा कि....

भारत सरकार के Ministry of Home Affairs के Foreigners Division की FCRA Wing के दस्तावेजों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2008-09 तक देश में कार्यरत ऐसे NGO's की संख्या 20088 थी, जिन्हें विदेशी सहायता प्राप्त करने की अनुमति भारत सरकार द्वारा प्रदान की जा चुकी थी.इन्हीं दस्तावेजों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2006-07, 2007-08, 2008-09 के दौरान इन NGO's को विदेशी सहायता के रुप में 31473.56 करोड़ रुपये प्राप्त हुये. इसके अतिरिक्त देश में लगभग 33 लाख NGO's कार्यरत है.इनमें से अधिकांश NGO भ्रष्ट राजनेताओं, भ्रष्ट नौकरशाहों, भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों, भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों के परिजनों,परिचितों और उनके दलालों के है. केन्द्र सरकार के विभिन्न विभागों के अतिरिक्त देश के सभी राज्यों की सरकारों द्वारा जन कल्याण हेतु इन NGO's को आर्थिक मदद दी जाती है.एक अनुमान के अनुसार इन NGO's को प्रतिवर्ष न्यूनतम लगभग 50,000.00 करोड़ रुपये देशी विदेशी सहायता के रुप में प्राप्त होते हैं.

 इसका सीधा मतलब यह है की पिछले एक दशक में इन NGO's को 5-6 लाख करोड़ की आर्थिक मदद मिली. ताज्जुब की बात यह है की इतनी बड़ी रकम कब.? कहा.? कैसे.? और किस पर.? खर्च कर दी गई. इसकी कोई जानकारी उस जनता को नहीं दी जाती जिसके कल्याण के लिये, जिसके उत्थान के लिये विदेशी संस्थानों और देश की सरकारों द्वारा इन NGO's को आर्थिक मदद दी जाती है. इसका विवरण केवल भ्रष्ट NGO संचालकों, भ्रष्ट नेताओ, भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों, भ्रष्ट बाबुओं, की जेबों तक सिमट कर रह जाता है.

भौतिक रूप से इस रकम का इस्तेमाल कहीं नज़र नहीं आता. NGO's को मिलने वाली इतनी बड़ी सहायता राशि की प्राप्ति एवं उसके उपयोग की प्रक्रिया बिल्कुल भी पारदर्शी नही है. देश के गरीबों, मजबूरों, मजदूरों, शोषितों, दलितों, अनाथ बच्चो के उत्थान के नाम पर विदेशी संस्थानों और  देश में केन्द्र एवं राज्य सरकारों के विभिन्न सरकारी विभागों से जनता की गाढ़ी कमाई के दसियों हज़ार करोड़ रुपये प्रतिवर्ष लूट लेने वाले NGO's की कोई जवाबदेही तय नहीं है. उनके द्वारा जनता के नाम पर जनता की गाढ़ी कमाई के भयंकर दुरुपयोग की चौकसी एवं जांच पड़ताल तथा उन्हें कठोर दंड दिए जाने का कोई विशेष प्रावधान नहीं है.
 लोकपाल बिल कमेटी में शामिल सिविल सोसायटी के उन सदस्यों ने जो खुद को सबसे बड़ा ईमानदार कहते हैं और जो स्वयम तथा उनके साथ देशभर में india against corruption की मुहिम चलाने वाले उनके अधिकांश साथी सहयोगी NGO's भी चलाते है लेकिन उन्होंने आजतक जनता के नाम पर जनता की गाढ़ी कमाई के दसियों हज़ार करोड़ रुपये प्रतिवर्ष लूट लेने वाले NGO's के खिलाफ आश्चार्यजनक रूप से एक शब्द नहीं बोला है, NGO's को लोकपाल बिल के दायरे में लाने की बात तक नहीं की है.
इसलिए यह आवश्यक है की NGO's को विदेशी संस्थानों और देश में केन्द्र एवं राज्य सरकारों के विभिन्न सरकारी विभागों से मिलने वाली आर्थिक सहायता को प्रस्तावित लोकपाल बिल के दायरे में लाया जाए |


♣♣♣ देखते हैं! क्या होता है इस देश का ???

एक गाँधी देश बांटकर चले गए नेहरू प्रेम में... और अब पूरा देश बंट रहा है...

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Thursday 18 August 2011

जानिए! अन्ना हजारे के बारे में....

ब तक हम अन्ना जी का सिर्फ नाम सुनते आ रहे है, लेकिन क्या हममें सभी को पता है की अन्ना जी कौन है, और उनकी जीवनी क्या है... तो आइये जानते है भ्रष्टाचार के खिलाफ बुलंद आवाज उठाने वाले इन समाजसेवी के बारे में...


भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आंदोलन में आम आदमी को जोड़ने वाले 73 साल के सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हज़ारे का मूल नाम किसन बापट बाबूराव हज़ारे है.
अन्ना हज़ारे भारत के उन चंद नेताओं में से एक हैं, जो हमेशा सफेद खादी के कपड़े पहनते हैं और सिर पर गाँधी टोपी पहनते हैं.
उनका जन्म 15 जून, 1938 को महाराष्ट्र के भिंगारी गांव के एक किसान परिवार में हुआ. उनके पिता का नाम बाबूराव हज़ारे और मां का नाम लक्ष्मीबाई हजारे है. अन्ना के छह भाई हैं. अन्ना का बचपन बहुत ग़रीबी में गुज़रा.
परिवार की आर्थिक तंगी के चलते अन्ना मुंबई आ गए. यहां उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की. कठिन हालातों में परिवार को देख कर उन्होंने परिवार का बोझ कुछ कम करने के लिए फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रूपए महीने की पगार पर काम किया.

सेना में भर्ती

अन्ना
भारत-चीन युद्ध के बाद सरकार की अपील पर अन्ना सेना में बतौर ड्राइवर भर्ती हुए थे.
वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद सरकार की युवाओं से सेना में शामिल होने की अपील पर अन्ना 1963 में सेना की मराठा रेजीमेंट में बतौर ड्राइवर भर्ती हुए थे.
1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अन्ना हज़ारे खेमकरण सीमा पर तैनात थे. 12 नवंबर 1965 को चौकी पर पाकिस्तानी हवाई बमबारी में वहां तैनात सारे सैनिक मारे गए. इस घटना ने अन्ना की ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया.
घटना के 13 साल बाद अन्ना सेना से रिटायर हुए लेकिन अपने जन्म स्थली भिंगारी गांव भी नहीं गए. वे पास के रालेगांव सिद्धि में रहने लगे.
1990 तक हज़ारे की पहचान एक ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता हुई, जिसने अहमदनगर जिले के रालेगांव सिद्धि को अपनी कर्मभूमि बनाया और विकास की नई कहानी लिख दी.

आदर्श गांव

इस गांव में बिजली और पानी की ज़बरदस्त कमी थी. अन्ना ने गांव वालों को नहर बनाने और गड्ढे खोदकर बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए प्रेरित किया और ख़ुद भी इसमें योगदान दिया.
अन्ना के कहने पर गांव में जगह-जगह पेड़ लगाए गए. गांव में सौर ऊर्जा और गोबर गैस के जरिए बिजली की सप्लाई की गई.
इसके बाद उनकी लोकप्रियता में तेजी से इज़ाफा हुआ.
1990 में 'पद्मश्री' और 1992 में पद्मभूषण से सम्मानित अन्ना हज़ारे को अहमदनगर ज़िले के गाँव रालेगाँव सिद्धि के विकास और वहां पानी की उपलब्धता बढ़ाने के लिए विभिन्न तरीक़ों का इस्तेमाल करने के लिए जाना जाता है.

'भ्रष्टाचार विरोधी जनआंदोलन'

अन्ना
भ्रष्टाचार के धुर विरोधी सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पहचान नब्बे के दशक में बनी
अन्ना की राष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार के धुर विरोधी सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पहचान नब्बे के दशक में बनी जब उन्होंने 1991 में 'भ्रष्टाचार विरोधी जनआंदोलन' की शुरूआत की.
महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा की सरकार के कुछ 'भ्रष्ट' मंत्रियों को हटाए जाने की मांग को लेकर भूख हड़ताल की. ये मंत्री थे- शशिकांत सुतर, महादेव शिवांकर और बबन घोलाप.
अन्ना हज़ारे ने उन पर आय से ज़्यादा संपत्ति रखने का आरोप लगाया था.
सरकार ने उन्हें मनाने की कोशिश की, लेकिन हारकर दो मंत्रियों सुतर और शिवांकर को हटाना ही पड़ा. घोलाप ने उनके खिलाफ़ मानहानि का मुकदमा कर दिया.
लेकिन अन्ना इस बारे में कोई सबूत पेश नहीं कर पाए और उन्हें तीन महीने की जेल हुई. हालांकि उस वक़्त के मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने उन्हें एक दिन की हिरासत के बाद छोड़ दिया.
एक जाँच आयोग ने शशिकांत सुतर और महादेव शिवांकर को निर्दोष बताया. लेकिन अन्ना हज़ारे ने कई शिवसेना और भाजपा नेताओं पर भी भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप लगाए.

सरकार विरोधी मुहिम

रालेगाँव सिद्धी गांव में अन्ना इसी मंदिर में रहते हैं.
2003 में अन्ना ने कांग्रेस और एनसीपी सरकार के कथित तौर पर चार भ्रष्ट मंत्रियों-सुरेश दादा जैन, नवाब मलिक, विजय कुमार गावित और पद्मसिंह पाटिल के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ दी और भूख हड़ताल पर बैठ गए.
हज़ारे का विरोध काम आया और सरकार को झुकना पड़ा. तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने इसके बाद एक जांच आयोग का गठन किया.
नवाब मलिक ने भी अपने पद से त्यागपत्र दे दिया. आयोग ने जब सुरेश जैन के ख़िलाफ़ आरोप तय किए तो उन्होंने भी इस्तीफा दे दिया.
1997 में अन्ना हज़ारे ने सूचना के अधिकार क़ानून के समर्थन में मुहिम छेड़ी. आख़िरकार 2003 में महाराष्ट्र सरकार को इस क़ानून के एक मज़बूत और कड़े मसौदे को पास करना पड़ा.
बाद में इसी आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन का रूप लिया और 2005 में संसद ने सूचना का अधिकार क़ानून पारित किया.
कुछ राजनीतिज्ञों और विश्लेषकों की मानें, तो अन्ना हज़ारे अनशन का ग़लत इस्तेमाल कर राजनीतिक ब्लैकमेलिंग करते हैं और कई राजनीतिक विरोधियों ने अन्ना का इस्तेमाल किया है.
कुछ विश्लेषक अन्ना हज़ारे को निरंकुश बताते हैं और कहते हैं कि उनके संगठन में लोकतंत्र का नामोनिशां नहीं है.
सम्मान
पदम् भूषण अवार्ड (१९९२)
पदम श्री अवार्ड (११९०)
इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार (१९८६)
महाराष्ट्र सरकार का कृषि भूषण पुरस्कार (१९८९)
यंग इंडिया अवार्ड ()
मैन ऑफ़ द ईयर अवार्ड (१९८८)
पॉल मित्तल नेशनल अवार्ड (२०००)
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंटेग्रीटि अवार्ड (२००३)
विवेकानंद सेवा पुरुस्कार (१९९६)
शिरोमणि अवार्ड (१९९७)
महावीर पुरुस्कार (१९९७)
दिवालीबेन मेहता अवार्ड (१९९९)
केयर इन्टरनेशनल (१९९८)
BASAVSHRI PRASHASTI 2000 AWARD (२०००)
GIANTS INTERNATIONAL AWARD (२०००)
नेशनलइंटरग्रेसन अवार्ड (१९९९)
VISHWA-VATSALYA & SANTBAL AWARD ()
जनसेवा अवार्ड (१९९९)
ROTARY INTERNATIONAL MANAV SEVA PURASKAR (१९९८)
विश्व बैंक का 'जित गिल स्मारक पुरस्कार' (२००८)

Thursday 11 August 2011

जबाब दीजिये: बाबरी मस्जिद या राम मंदिर : बौद्धिक दृष्टि में DR.AYAZ AHMAD


निचे दिए गए अयाज़ साहब के सवालो का जबाब है किसी के पास?......

MONDAY, AUGUST 2, 2010


बाबरी मस्जिद या राम मंदिर : बौद्धिक दृष्टि में DR.AYAZ AHMAD

रामचंद्र जी एक राजा थे उन्होने शासन किया और चले गए । बाबर एक बादशाह था उसने शासन किया और चला गया । हकनामा की बाबरी मस्जिद से संबंधित पोस्ट पर चल रही बहस पढ़ कर मन मे एक सवाल उठा वह मैं ब्लाग जगत के सभी बुद्धिजीवियों के सामने रख रहा हूँ । बाबर इस देश मे आक्रमणकारी के तौर पर आया वह कब आया और कब तक उसने शासन किया और कब उसकी मृत्यु हुई यह सब ऐतिहासिक तथ्य मैं भी जानता हूँ और आप सब बुद्धिजीवी भी जानते ही होंगे लेकिन श्रीरामचंद्र जी कब पैदा हुए और कब से कब तक उन्होने शासन किया और कब उनकी मृत्यु हुई ये मैं नही जानता मगर यहाँ पर कुछ बुद्धिजीवी ऐसे मौजूद है जो यह भी जानते है कि अयोध्या मे रामचंद्र जी किस जगह पैदा हुए इसलिए वह ऊपर दिए गए सवालो के जवाब भी जानते होंगे । भारत एक धर्म प्रधान देश है धर्म और न्याय एक दूसरे के पूरक है धर्म ही सही न्याय कर सकता है इसलिए सभी न्याय पूर्वक विचार करें । और उपरोक्त सवालो के जवाब दें....
ज्यादा जानकारी, पोस्ट और कमेंट्स के लिए यहाँ क्लिक करें..
http://drayazahmad.blogspot.com/2010/08/drayaz-ahmad.html

गरमाती धरती घबराती दुनिया...

      म धारणा है कि तापवृद्धि केवल मनुष्यों द्वारा उपजाई गई समस्या है। वास्तव में मानवीय क्रिया-कलाप धरती के बढ़ते हुए तापमान के एक अंश के लिए ही उत्तरदायी हैं। प्रकृति में स्वत: होने वाली बहुत-सी प्रक्रियाएँ भी तापवृद्धि का कारण हैं। वैज्ञानिकों ने तापवृद्धि के बारे बहुत-सी व्याख्याएँ की हैं और इस संबंध में सर्वमान्य सिद्धांत स्थापित करने की दिशा में प्रयास किए हैं। हम इन्हीं सिद्धांतों के बारे में चर्चा करते हैं।

ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन: हमारे वातावरण की निचली सतह में उपस्थित ग्रीनहाउस गैसें सूर्य से आने वाले प्रकाश को पृथ्वी पर आने देती हैं। फलस्वरूप पृथ्वी गर्म होने लगती है और अवरक्त प्रकाश (इन्फ्रारेड
रेडियेशन) उत्सर्जित करती है। ग्रीनहाउस गैसें इस प्रकाश को पृथ्वी के वातावरण से बाहर नहीं निकलने देतीं और इस प्रकार बहुत-सी उष्मा पृथ्वी के इर्द-गिर्द संचित होती रहती है। मुख्य ग्रीनहाउस गैसें हैं - कार्बन डाई-ऑंक्साइड, मीथेन, जल-वाष्प, नाइट्रस ऑंक्साइड और ओज़ोन। ग्रीनहाउस गैसों की वृद्धि बहुत-सी मानवीय गतिविधियों जैसे, जीवाश्मों का जलना, वनों की कटाई और कृषि कार्य से भी होती है। हालाँकि ग्रीनहाउस गैसों की हमारे जीवन में बहुत उपयोगिता भी है। यदि ये गैसें न हों तो हमारी धरती का तापमान इतना कम हो जाएगा की पृथ्वी पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकेगी।

सौर ऊर्जा में परिवर्तन: जब सूर्य स्वयं ही अधिक ऊर्जा उत्सर्जित करे तो भला धरती गर्म क्यों न हो? इस परिकल्पना के अनुसार सूर्य ही सतह पर होने वाली अभिक्रियाओं की मात्रा में परिवर्तन होने के कारण सूर्य से आने वाले प्रकाश में समय के साथ-साथ परिवर्तन होता रहता है।

धरती की कक्षा में परिवर्तन: वैज्ञानिकों द्वारा यह संभावना भी व्यक्त की जा रही है कि धरती के सूर्य के चारों ओर घूमने वाली कक्षा में परिवर्तन हो गया है। पृथ्वी की कक्षा में छोटे से परिवर्तन से भी पृथ्वी द्वारा सूर्य से प्रकाश ग्रहण करने की मात्रा में भारी अंतर आ सकता है।

ज्वालामुखी विस्फोट: ज्वालामुखी विस्फोटों के फलस्वरूप बहुत-सी ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं और धरती के वातावरण की निचली सतह पर जमा हो जाती हैं।

हिमयुग का अंत: भूगर्भ विज्ञान के साक्ष्यों के अनुसार लंबे समय अंतरालों के बाद धरती गर्म और ठंडी होती रहती है। ठंडे काल को 'हिमयुग' कहा जाता है। ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही है कि धरती अभी किसी हिमयुग से उबर रही है और फलस्वरूप धीरे-धीरे गर्म हो रही है।


तापवृद्धि के प्रत्यक्ष और परोक्ष परिणाम

  • जलवायु वैज्ञानिकों द्वारा की गई भविष्यवाणी के अनुसार आने वाले समय में पृथ्वी का औसत तापमान ''१।४'' से लेकर ''५।८'' डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। इस तापवृद्धि के प्रत्यक्ष और परोक्ष परिणाम इतने व्यापक होंगे कि उनकी कल्पना कर पाना भी मुश्किल है। बर्फ़ पिघलने के कारण समुद्रों का जल-स्तर बढ़ेगा और कुछ छोटे देश तो डूब ही जाएँगे। इसके अलावा वातावरण में उपस्थित जल की मात्रा में परिवर्तन होने के कारण मौसम के विपरीत स्वरूप एक साथ दिखेंगे - तूफ़ान, सूखा और बाढ़। बर्फ़ प्रकाश की अच्छी परावर्तक होती है। जब पृथ्वी पर बर्फ़ ही नहीं रहेगी तो सूर्य से आने वाली उष्मा बहुत कम मात्रा में परावर्तित हो पाएगी तथा इससे और भी तापवृद्धि होगी।
  • परोक्ष परिणाम तो बहुत से होंगे। बहुत से पौधों और जीवों के स्वभाव में परिवर्तन आएगा और यह प्रकृति संतुलन के लिए ख़तरा हो सकता है। उदाहरण के लिए जब सर्दियाँ अधिक ठंडी नहीं होंगी तो बसंत ऋतु जल्दी आएगी और पंछी जल्दी अंडे देने लगेंगे। पलायन करने वाले ठंडी प्रकृति के पक्षी सर्दी की खोज में अपना नया ठिकाना खोजने का प्रयास करेंगे और इस प्रकार उनके मूल स्थान पर उनके द्वारा खाए जाने वाले जीवों की संख्या में एकाएक वृद्धि हो जाएगी। प्रकृति में असंतुलन की स्थिति से मनुष्य भी अछूता नहीं करेगा। नए-नए प्रकार की बीमारियाँ जन्म लेंगी और महामारी की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
  • प्रश्न है कि अभी स्थिति मानव के हाथ में कितनी है? यदि वास्तव में मानवीय गतिविधियाँ ही समस्या का मूल हैं तो शायद हम बहुत कुछ कर सकते हैं, और यदि तापवृद्धि का कारण कोई और प्राकृतिक सिद्धांत है तो भी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के संबंध में कुछ तो कर ही सकते हैं। इसी बिंदु को लेकर बहुत से देशों की भागीदारी से क्योटो मसौदा तैयार किया गया है जिसमें ग्रीनहाउस गैसों के कम से कम उत्सर्जन के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय नीति तैयार की गई है। जो भी हो, इतना तो निश्चित है कि प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के लिए हमें अपनी जीवन शैली में बहुत बड़ा परिवर्तन लाना होगा। यह भी समझना होगा कि समय की दौड़ में हम प्रकृति के साथ-साथ चलें, उससे आगे भागने का प्रयास न करें, तभी "माता भूमिः पुत्रोऽहम् पृथिव्याः" सार्थक हो सकेगा।

"धरती का तापमान भले भी मानवीय गतिविधियों के कारण ही बढ़ रहा हो या नहीं, पर यह अवश्य एक मौका है उपभोक्तावादी मानसिकता त्यागकर किफ़ायत के साथ अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने का और प्रकृति के साथ बेहतर सामंजस्य स्थापित करने का। आशा है कि हमारी आदतों और नीतियों को निर्धारित करने में हमारा लालच आड़े नहीं आएगा।"


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Friday 5 August 2011

श्रावण माष विशेष (शिवताण्डवस्तोत्रम्...)


... श्रीगणेशाय नमः ...

टाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् |
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्ड्ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् || १||

जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी-
- विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि |
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम || २||

धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे |
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे( क्वचिच्चिदंबरे) मनो विनोदमेतु वस्तुनि || ३||

लताभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे |
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि || ४||


सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः |
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः || ५||

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा-
- निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् |
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः || ६||

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके |
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक-
- प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ||| ७||

नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्-
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः |
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः || ८||

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा-
- वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् |
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकछिदं तमंतकच्छिदं भजे || ९||

अखर्व( अगर्व) सर्वमङ्गलाकलाकदंबमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरी विजृंभणामधुव्रतम् |
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे || १०||

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस-
- द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् |
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः || ११||

स्पृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्-
- गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः |
तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृत्तिकः ( समं प्रवर्तयन्मनः) कदा सदाशिवं भजे || १२||

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् |
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् || १३||

इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् |
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् || १४||

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः
शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे |
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः || १५||

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इति श्रीरावण- कृतम्
शिव- ताण्डव- स्तोत्रम्
सम्पूर्णम्
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जीवन में महत्वपूर्ण...

जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी - जल्दी करने की इच्छा होती है , सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , " काँच की बरनी और दो कप चाय " हमें याद आती है । 

दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं ... 

उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची ... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ ... आवाज आई ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे - छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये h धीरे - धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ ... कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ .. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा .. सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई ... 

प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया – 

इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो .... 

टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं ,

छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और 

रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है .. 

अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी ... 

ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है ... यदि तुम छोटी - छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा ... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ , घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक - अप करवाओ ... टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है ..... पहले तय करो कि क्या जरूरी है ... बाकी सब तो रेत है .. 

छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे .. अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि " चाय के दो कप " क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया ... 

इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये |

Thursday 4 August 2011

” सावधान आईने को मत तोड़ो! “

क पागल आदमी था | वो अपने आप को बहुत सुन्दर समझता था | जैसा की सब पागल समझतें हैं की पृथ्वी पर उस जैसा सुन्दर दूसरा कोई नहीं है | यही पागलपन के लक्षण है लेकिन वह आईने के सामने जाने से डरता था, लेकिन जब भी कोई उसके सामने आइना ले आता तो वह आईना फोड़ देता था | लोग पूछते ऐसा क्यों? तो वह कहता में इतना सुन्दर हूँ और आईना कुछ ऐसे गड़बड़ करता है की मुझे कुरूप बना देता है | मैं किसी आईने को नहीं सहूँगा |  वह कभी आईना नहीं देखता |
मनुष्य भी पागल की तरह व्यवहार करता है | वह यह नहीं सोचता की आईना वही तस्वीर दिखाता है, जो मैं हूँ | आईने को मेरा कोई पता तो मालूम नहीं जो वह मुझे बदसूरत बनायेगा | लेकिन बजाये यह देखने की, हम आईना तोड़ने में लग जाते हैं | परेशानियों से दूर भागने वाले लोग उन्ही आईना तोड़ने वाले लोगो की तरह होते हैं | अगर संसार आपको दुःख का कारण लगने लगे, तो याद रखना संसार एक दर्पण से ज्यादा नहीं | अगर कांटें इकट्ठे किये हैं तो दिखाई तो पड़ेंगे | यह दुनिया हमारा ही अक्स है | क्या कभी कोई अपने अक्स को कैद कर पाया है, नहीं ना ? तो आप कैसे कर पायेंगे | अगर परेशानियों से पीछा छुड़वाना है तो खुद को बदलना होगा ना कि आईने को तोड़ना |

प्रस्तुतकर्ता

-"आशु"

Monday 1 August 2011

सर फ़रोशी की तमन्ना - रामप्रसाद बिस्मिल

र फ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।
करता नहीं क्यूं दूसरा कुछ बात चीत
देखता हूं मैं जिसे वो चुप तिरी मेहफ़िल में है।
ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है।
वक़्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमाँ
हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है।
खींच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उम्मीद
आशिक़ों का आज झमघट कूचा-ए-क़ातिल में है।
है लिए हथियार दुश्मन ताक़ में बैठा उधर
और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है।
हाथ जिन में हो जुनून कटते नहीं तलवार से
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से
और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है।
हम तो घर से निकले ही थे बांध कर सर पे क़फ़न
जान हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये क़दम
ज़िंदगी तो अपनी मेहमाँ मौत की महफ़िल में है।
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इंक़िलाब
होश दुशमन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज
दूर रह पाए जो हम से दम कहां मंज़िल में है।
यूं खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है।



प्रस्तुतकर्ता
-"आशु"

"गलती से भी बड़ी गलती है उस पर हँसना"

न्नीसवी सदी की बात है, एक बार महारानी विक्टोरिया लन्दन में राजनयिक सम्मान समारोह में शामिल थी| समारोह के सम्मानीय अतिथि थे अफ्रीका के शासन प्रमुख| समारोह में करीब ५०० कूटनीतिज्ञ तथा राजशाही परिवार के सदस्य भाग ले रहे थे| सभी एक साथ भोजन करने बेठे| भोजन परोसे जाने के दोरान सब कुछ ठीक रहा लेकिन जब फिंगर बोल (हाथ धोने का पात्र) सभी के सामने रखा गया तो यह कइयो की फजीहत का कारन बन गया| अफ़्रीकी शासन प्रमुख ने इससे पूर्व कभी फिंगर बोल नहीं देखा था| वह परंपरा इंग्लैंड में बहुत प्रसिद्ध थी| अफ़्रीकी राजनयिक को किसी ने इसके बारे में समझाना जरूरी नहीं समझा था|
समारोह में मोजूद सभी विशेष अतिथियों को लगा की उन्हें इसकी जानकारी होगी| उस राजयनिक ने फिंगर बोल को कुछ श्रनों तक देखा तथा उसके बाद उसे अपने दोनों हाथों से पकड़कर उठाया| इससे पहले की कोई उनसे कुछ कह पाता| उन्होंने कटोरे को मुहँ से लगाया और उसमें रखे पानी को एक साँस में पी गए| यह देखकर सभी अति विशिष्ट अतिथि सन्न रह गये| कुछ श्रनों के लिए मेज पर सन्नाटा छाया रहा तथा उसके बाद सभी ने काना फूसी शुरू कर दी| सभी को व्याकुल देख महारानी विक्टोरिया ने भी फिंगर बोल को अपने दोनों हाथों में लिया और उसे मुहँ से लगा कर उसमे पड़े पानी को पी गयीं| महारानी को हाथ धोने वाला पानी पीते देख सभी लोग चकित रह गये लेकिन एक एक कर सभी ने अपने अपने फिंगर बोल को मुहँ से लगाया और पानी पी गये|
यह महारानी विक्टोरिया का अनोखा का तरीका था जिससे उन्होंने अपने अतिथि की लाज रखी तथा उन्हें किसी शराम्नक परिस्तिथि में पड़ने से रोका| यह एक ऐसी कला है, जो सिर्फ एक अच्छे शासक में ही हो सकती है|

सीख:-  मानव प्रवृति है की कोई भी व्यक्ति हमेशा दुसरो का मजाक बनाने के बहाने खोजता रहता है| इससे सीख मिलती है की किसी की भी गलती पर हँसने के बजाये शांत रहना चाहिये| तेज दिमाग और सूझ भुझ के जरिये दुसरो को शर्मिंदा होने से बचाने के लिए उनकी गलती को दोहरा कर उन्हें सम्मान दिया जा सकता है|

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