♣♣♣ " ऊपर जिसका अंत नहीं उसे आसमां कहते हैं, और नीचे जिसका अंत नहीं उसे माँ कहते हैं..."

Saturday, 16 July 2011

महाराणा प्रताप का चित्र - अकबर बीरबल के चुटकुले (Vol-1)


अकबर बीरबल
जब अकबर लाखों सेना और करोडों रुपया खर्च करके महाराणा प्रताप को न पकड़ सका ,तो उसने अपमान करने के लिए प्रताप का चित्र पाखाने पर लगवा दिया ,जिससे आने जाने वाले उसे देखें और उनका खूब अपमान हो .
अकस्मात् उधर से बीरबल निकले . उन्होंने जब यह देखा तो उन्हें बड़ा क्रोध आया ,क्योंकि वह महाराणा प्रताप पर बड़ी श्रद्धा रखते थे . उन्होंने लौटकर तुरंत ही बादशाह से पूछा - जहाँपनाह ! ऐसा मालूम होता है कि आपको कब्ज की शिकायत है .''
बादशाह ने पूछा - क्यों ? नहीं तो .
बीरबल ने उत्तर दिया - आपने जो महाराणा प्रताप का चित्र अपने पाखाने पर लगवा दिया है ,उससे यह मालूम पड़ता है कि आपको कब्ज की शिकायत है ,क्योंकि जब आप प्रताप के चित्र को देखते होंगे तब अवश्य ही आपको पाखाने की हाजत हो उठती होगी . इसीलिए आपने उनका चित्र पाखाने पर लगाया है .
यह सुनकर बादशाह को काफी क्रोध आया और लज्जा भी . उन्होंने उसी समय महाराणा प्रताप का चित्र पाखाने से हटवा लिया . 

Friday, 15 July 2011

आए हैं "आशु" मुँह को...

आए हैं "आशु" मुँह को बनाए जफ़ा से आज
शायद बिगड़ गयी है उस बेवफा से आज

जीने में इख्तियार नहीं वरना हमनशीं
हम चाहते हैं मौत तो अपने खुदा से आज

साक़ी टुक एक मौसम-ए-गुल की तरफ़ भी देख
टपका पड़े है रंग चमन में हवा से आज

था जी में उससे मिलिए तो क्या क्या न कहिये "आशु"
पर कुछ कहा गया न ग़म-ए-दिल हया से आज


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सास्वत कुछ नहीं/बच्चों की कहानियां (Vol-2)


             एक नगर में एक साधू महात्मा आए हुए थे। राजा जी ने जब ये बात सुनी तब उनहोंने साधू महात्मा को राजमहल पधारने के लिए निमंत्रण भीजवाया। साधू जी ने राजा जी का निमंत्रण स्वीकार कर राजमहल पहुंचे।
राजा जी ने उनके स्वागत में हो सके उतनी सारी सेवायें दी।
साधू जी अब वहां से जाने लगे तब राजा जी ने उनको विनती की की - "कुछ सिख देते जाएँ"
तब साधू महात्मा ने उनके हाथों में एक कागज़ की बन्ध पर्ची देते हुए कहा की - " इसे तब खोलना जब आप पर बहुत भारी संकट या मुश्किल आन पड़े"
इतना कह कर साधू ने राजा जी से विदा ली।
कुछ सालों बाद राजा जी के नगर पर दुसरे राजा ने चडाई कर दी।
इस युद्ध के दौरान उनकी सारी सम्पति और राज खजाना सब खर्च हो गया।
तब राजा जी को वो साधू महात्मा की दी हुई पर्ची याद आयी...
उनहोंने पलभर की भी देर किए बगैर वो पर्ची को खोला।
उस में लिखा था - " यह भी नहीं रहेगा"
राजा सब समझ गए। अभी उनका बुरा वक्त चल रहा है। यह ज्यादा दिन नहीं रहेगा। 

शिक्षा - सुख-दुख हो या मुश्किल परिस्थिति यह सब स्थायी नहीं है । उसके लिए शोक नहीं करना चाहिए।


सौजन्य -
"आशु"

Thursday, 14 July 2011

आह ! वेदना मिली विदाई

आह ! वेदना मिली विदाई
मैंने भ्रमवश जीवन संचित,
मधुकरियों की भीख लुटाई

छलछल थे संध्या के श्रमकण
आँसू-से गिरते थे प्रतिक्षण
मेरी यात्रा पर लेती थी
नीरवता अनंत अँगड़ाई

श्रमित स्वप्न की मधुमाया में
गहन-विपिन की तरु छाया में
पथिक उनींदी श्रुति में किसने
यह विहाग की तान उठाई

लगी सतृष्ण दीठ थी सबकी
रही बचाए फिरती कब की
मेरी आशा आह ! बावली
तूने खो दी सकल कमाई

चढ़कर मेरे जीवन-रथ पर
प्रलय चल रहा अपने पथ पर
मैंने निज दुर्बल पद-बल पर
उससे हारी-होड़ लगाई

लौटा लो यह अपनी थाती
मेरी करुणा हा-हा खाती
विश्व ! न सँभलेगी यह मुझसे
इसने मन की लाज गँवाई...