♣♣♣ " ऊपर जिसका अंत नहीं उसे आसमां कहते हैं, और नीचे जिसका अंत नहीं उसे माँ कहते हैं..."

Thursday, 21 July 2011

भ्रष्टाचार ...चीन में सजा... भारत में मज़ा...


चीन  में  गत   मंगलवार को दो भ्रष्ट राजनेताओं को फाँसी  पर चढ़ा दिया गया - ये थे पूर्व मेयर जो रिश्वत लेने, हेराफेरी और पद के दुर्रपयोग के दोषी पाए गए. १२ मई को मृत्यु दंड की सजा सुनाई गई और महज़ २ महीने नौं दिन के बाद लटका दिया गया.  भ्रष्टाचार के प्रति अपनी ' जीरो   टालरेंस ' निति की बदौलत आज चीन विकास स्तर में भारत से मीलों आगे निकल गया है. ऐसी अनेकों उदाहरण चीन में देखने को मिलती हैं जब भ्रष्टाचार में लिप्त राजनेताओं, कर्मचारियों व् अन्य नागरिकों को सूली पर लटका दिया गया. 
हमारे यहाँ   ऐसी एक भी उदहारण ' ढूँढते रह जाओगे ' सूली तो क्या किसी को मामूली सजा भी हुई हो. आज हम  विश्व   के भ्रष्ट देशों के सिरमौर बन कर उभरे हैं और शीर्ष स्थान तक पहुँचाने  के लिए   चंद  पायदान  की दरकार   है. भ्रष्टाचार के कीर्तिमान   बनाने  में हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री महा पंडित  श्री श्री जवाहर लाल जी नेहरु का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. पंडित जी द्वारा रोपे और सिंचित  किये गए भ्रष्टाचार के  बूटे  आज वट वृक्ष बन उभरे  हैं .पंडित जी के कार्यकाल में पहला घोटाला जीप     घोटाला था जिसे    उनके चहेते कृष्णा मेनन ने सरअंजाम   दिया था.  
आजाद भारत का यह पहला घोटाला था और वह  भी देश की सुरक्षा  से सम्बंधित !   नाम - मात्र के विरोधी  सांसदों   ने यह मामला  जोर शोर से संसद में उठाया... नेहरु जी  बुरा    मान     गए - कृष्णा   मेनन नेहरु जी  के ख़ास राजदार जो ठहरे  ? मेनन को सजा तो क्या ! इनाम सवरूप रक्षा मंत्री बना दिया ! नतीजा  ६२ के युद्ध  में हम चीन के हाथों  पराजित  हुए और हजारों मील अपनी  भूमि से हाथ धो बैठे. नेहरु जी सदमे से उबर न सके और अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए. 
दूसरा भ्रष्टाचार भी  नेहरु जी की ही  देन  था जब पंजाब  के वृष्ट  नागरिक  व् राजनेता  नेहरु जी   से मिले   और ततकालीन    मुख्यमंत्री  परताप सिंह कैरो की लूट  खसूट  की  शिकायत की. नेहरु जी ने कैरो के खिलाफ कार्रवाही तो क्या करनी थी उल्टा 'जुमला' दे  मारा   ' अरे  भई   कैरो यह लूट  का पैसा कोई बाहर तो नहीं  ले गया - देश में ही लगा रहा है. भ्रष्टाचार के प्रति 'सब चलता है' की इस  नीति के चलते और नेहरु जी की नादानी के परिणाम स्वरुप   आज , स्विस  बैंकों  में भ्रष्टाचार से लूटा गया - भारत का   काला धन १५०० बिलियन  डालर को पार कर गया है. 
बाबा राम देव जी ने जब भारत के विदेशी बैंकों में पड़े पैसे को राष्ट्रिय  सम्पति घोषित करने और काला धन विदेशी बैंको में जमा करवाने वालों के खिलाफ मृत्यु दंड की मांग में राम लीला मैदान में लाखों समर्थकों के साथ अहिंसक व् शांतमयी     धरना   दिया तो हमारी सेकुलर शैतानों की सर्कार ने आन्दोलनकारियों    को पीट   पीट कर भगाया और भगा भगा कर पीटा. जाहिर है सरकार में बैठे राजनेता नहीं चाहते  कि लोग स्विस बैंको में पड़े पैसे पर हो हल्ला करे क्योंकि अधिकाँश पैसा पिछले ६४ साल से सत्ता सुख भोग रहे राजनेताओं और उनके कुनबे का है. उल्टा आन्दोलनकारी समाजसेवकों को झूठे मामलों में प्रताड़ित करने का खेल खेला जा रहा है. मिडिया को इन समाजसेवकों के खिलाफ प्रचार के लिए करोड़ों रूपए की 'विज्ञापन  सुपारी' दी जा रही है. ताकि आम लोगो में भ्रम फैलाया जाए. एक सर्वे के अनुसार देश की ५४ % जनता भ्रष्टाचार के प्रति संवेदनहीन है. एक ही परिवार और पार्टी की सरकार की पिछले ६४ साल में देश 
को भ्रष्टाचार के गर्त में धकेलने कि यह सबसे बड़ी साजिश है. 
तोहमतें आयेंगी नादिरशाह पर - आप दिल्ली रोज़ ही लूटा करो .
नेहरु का बोया भ्रष्ट बीज  आज मनमोहन के सर पर वट वृक्ष बना इतरा रहा है - महज़ ६८ करोड़ के बोफोर्स घोटाले पर केंद्र की सरकार औंधे मूंह गिरी थी .. आज १.७६ लाख करोड़ के २जी घोटाले पर देश में शमशान सी ख़ामोशी है. क्योंकि ऐसे महां घोटाले तो  अब  रोज़ रोज़ उजागर हो रहे हैं.  चोरों का सरदार सिंह फिर भी ईमानदार है ? न्यायालयों की सक्रियता के चलते अनेक मंत्री और संत्री तिहार जेल में बंद हैं. सिलसिला अगर यूँ ही जारी रहा तो एक दिन मंत्री मंडल की बैठक भी तिहार जेल में होगी और हमारे चोरों के सरदार और फिर भी ईमानदार प्रधानमंत्री को भी     ' ति...    हा ...   र ...  '       तो जाना ही पड़े.... गा ..........??????????

-"Ashu"

4 comments:

  1. काश हमारे देश में भी इस तरह की सजा का कोई प्रावधान होता ...

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  2. सटीक बात कही है. लेकिन सूली पर इन्हें लटकाये कौन? सब तो मिले बैठे हैं..

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  3. जी हाँ,
    अपने देश का पूरा सिस्टम करप्ट है, यह किसी वृक्ष पर लगे अमरबेल की तरह है, जिसे यदि हम जड़ से उखाड़ कर फेंक भी दें, तो भी यह वृक्ष को अपनी चपेट में लिए रहता है, तात्पर्य यह की, यदि जड़ मतलब निचे के अधिकारी, भ्रष्टाचार छोड़ना भी चाहे तो ऊपर के लोग उन पर दबाव डालते है. जरुरत है इस अमरबेल को ऊपर की तरफ से उखाड़ फेंकने की. लेकिन कैसे? ये अभी विचाराधीन है......

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  4. अपनी गुस्ताखी के लिए मै माफ़ी चाहूँगा, लेकिन मै ये नहीं समझ पा रहा
    हूँ , की वर्तमान में, हम लोग यहाँ किस तरह की राष्ट्रभक्ति, या
    राष्ट्रप्रेम प्रस्तुत करना चाहते है. क्या हमारा ये आदर्श है की, हम
    सिर्फ इतिहास को मद्देनजर रखते हुए, अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते
    रहे. पीढ़ी दर पीढ़ी हम शिखर से शून्य की ओर बढ़ते आ रहे है. भारत एक ऐसा
    देश बनकर रह गया है, जहा ४-६ लोग मिलकर सिर्फ भ्रस्ताचार, देशप्रेम
    इत्यादि की बाते कर रहे होते है. आक्रोश सब में है, मगर आवाज दब गयी है.
    क्यूकि सब लोग जानते है की उनकी आवाज में वो दम नहीं जो इस देश की
    मर्यादा को धुलिधुसरित करने वालो का दिल देहला सके. लोग आदर्श मानते है
    भगत सिंह, आजाद, सुभाष चन्द्र बोष आदि को, क्यूकि उनमे ये क्षमताये थी,
    कारण ये की उन्हें अपने स्वार्थ से जादा इस देश से मोहब्बत थी. वो समस्त
    राष्ट्र को अपना घर मानते थे. आज यहाँ उपस्थित सभी लोगो से मै ये पूछना
    चाहूँगा की एकाध को छोड़कर हर घर में विवाद क्यों है. क्यों हर जगह
    अशांति भरा माहौल है. भैया लोगो, हिंदुस्तान और पाकिस्तान का मुद्दा ही
    नहीं , जहा पर भी त्याग को छोड़कर स्वार्थ की भावनाए आएँगी वह अशांति
    फैलेगी. हर इंसान सिर्फ भौतिकता के पीछे भागता जा रहा है. किसी के पास
    वक़्त ही नहीं है, कुछ सुनने या समझने के लिए. एक पशु के सामान सुबह उठकर
    जितने अनैतिक कार्य करना होता है करते है. देश की चिंता किसे है. जिसे है
    वो यहाँ ब्लोगिंग कर रहे है बैठकर. क्यूकि जिन्हें हमने इस देश को
    संचालित करने के लिए चुना है, वो भूखे और नंगे है. जिनका पेट न कभी भर
    सकता है और न ही कोई वस्त्र इनके तन को ढक सकता है.

    भैया हम तो इतना ही जानते है की, हमारी वर्तमान स्थिति से बेहतर स्थिति
    तो अंग्रेजो की गुलामी में थी, जहा कम से कम इस मुल्क के हर एक जर्रे की
    एक ही आवाज थी की:
    "हम हिन्दुस्तानी है, अगर हम मोहब्बत में सर झुका सकते है, तो अपनी
    मातृभूमि की रक्षा के लिए सरो को काट भी सकते है."

    आज मुल्क अपना है, और अपने लोग ही पराये है. हमारे ही घरो में हमे शुकून
    की तलाश रहती है. जानवर तो पुरे जंगल में खुद को सुरक्षित महसूस करता है,
    और हम खुद के घरो में नही महफूज़ नहीं है| (गहराई से विचार कीजिये, तो एक
    ही बात सामने आती है : "जब स्वयं को बदलना इतना मुश्किल है तो दूसरो को
    बदलना आसान कैसे हो सकता है.")

    -
    "आशु"

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