दुनिया सुखो के पीछे दौड़ रही है| हर कोई सब कुछ पाने की होड़ में लगा है| हम खुद भी ऐसे हैं और बच्चों को भी इसी दौड़ में जुटा दिया है| हर सुख, सारी सुविधा और दुनिया भर का वैभव हर एक की दिली तमन्ना हो गयी है| एक चीज़ का अभाव भी बर्दाशत नहीं है| थोड़ी सी असफलता हमें तोड़ देती है| लेकिन इसके बाद भी जो नहीं मिल पा रहा है वो है आनंद| दरअसल यह आनंद सब कुछ पा लेने में नहीं है| कभी – कभी अभाव में जीना भी आनंद देने लगता है|
अगर आपके अन्दर कोई अभाव है तो उसे सद्गुणों से भरने का प्रयास करें|
महत्वाकांक्षाओं को हावी न होने दे| मन चाहा मिल जाए इसके लिये तेज़ी से
दौड़ रही है दुनिया|
न मिलने का विचार तो लोगो को भीतर तक हिला देता है|
संतों ने बार – बार कहा है जो है उसका उपयोग करो और जो नहीं है
उसके बारे में सोच – सोच कर तनाव में मत आओ|
हम जो नहीं हैं उसे हानि मन कर जो है उसका भी लाभ नहीं उठा पाते हैं|
संतो के पास यह कला होती है की वह अभाव का भी आनंद उठा लेते हैं|
हमारे लिये दो उदहारण काफी हैं| श्री राम वनवास में पूरी
तरह से अभाव में थे| जिनका कल राजतिलक होने वाला था
उन्हें चौदह वर्ष वनवास जाना पड़ा| इधर रावण के पास ऐसी
सत्ता थी जिसे देख देवता भी नतमस्तक थे| एक के पास सब
कुछ था फिर भी वहा हार गया और दुसरे ने पूर्ण अभाव में
भी दुनिया जीत ली| अभाव हमें संघर्ष के लिये प्रेरित करे कुछ
पाने के लिये प्रोत्साहित करे यहाँ तक तो ठीक है परन्तु हम
अभाव में बैचेन हो जाते हैं और परेशान, तनावग्रस्त मन लेकर
कुछ पाने के लिये दौड़ पड़ते हैं| तब क्रोध, हिंसा, भ्रष्ट आचरण
हमारे भीतर कब उतर जाते हैं पता ही नहीं चल पाता है|
इसे एक और दृष्टि से देख सकते हैं| रावन में भक्ति का
अभाव था, बाकी सब कुछ था उसके पास| कई लोगो के साथ
ऐसा होता है| आदमी अपने अन्दर के अभाव को भरने की
कोशिश भी करता है| रावन ने भक्ति के अभाव को अपने
अहंकार से भरा था, आज भी कई लोग अपनी
महत्वकांक्षी विकृतियों, दुर्गणों से भरने लगते हैं|
जिन्हें भक्ति करना हो वें समझ ले पहली बात
अभाव का आनंद उठाना सीखें और अभाव को
भरने के लिये लक्ष्य, उद्देश्य पवित्र रखें|
महत्वाकांक्षाओं को हावी न होने दे| मन चाहा मिल जाए इसके लिये तेज़ी से
दौड़ रही है दुनिया|
न मिलने का विचार तो लोगो को भीतर तक हिला देता है|
संतों ने बार – बार कहा है जो है उसका उपयोग करो और जो नहीं है
उसके बारे में सोच – सोच कर तनाव में मत आओ|
हम जो नहीं हैं उसे हानि मन कर जो है उसका भी लाभ नहीं उठा पाते हैं|
संतो के पास यह कला होती है की वह अभाव का भी आनंद उठा लेते हैं|
हमारे लिये दो उदहारण काफी हैं| श्री राम वनवास में पूरी
तरह से अभाव में थे| जिनका कल राजतिलक होने वाला था
उन्हें चौदह वर्ष वनवास जाना पड़ा| इधर रावण के पास ऐसी
सत्ता थी जिसे देख देवता भी नतमस्तक थे| एक के पास सब
कुछ था फिर भी वहा हार गया और दुसरे ने पूर्ण अभाव में
भी दुनिया जीत ली| अभाव हमें संघर्ष के लिये प्रेरित करे कुछ
पाने के लिये प्रोत्साहित करे यहाँ तक तो ठीक है परन्तु हम
अभाव में बैचेन हो जाते हैं और परेशान, तनावग्रस्त मन लेकर
कुछ पाने के लिये दौड़ पड़ते हैं| तब क्रोध, हिंसा, भ्रष्ट आचरण
हमारे भीतर कब उतर जाते हैं पता ही नहीं चल पाता है|
इसे एक और दृष्टि से देख सकते हैं| रावन में भक्ति का
अभाव था, बाकी सब कुछ था उसके पास| कई लोगो के साथ
ऐसा होता है| आदमी अपने अन्दर के अभाव को भरने की
कोशिश भी करता है| रावन ने भक्ति के अभाव को अपने
अहंकार से भरा था, आज भी कई लोग अपनी
महत्वकांक्षी विकृतियों, दुर्गणों से भरने लगते हैं|
जिन्हें भक्ति करना हो वें समझ ले पहली बात
अभाव का आनंद उठाना सीखें और अभाव को
भरने के लिये लक्ष्य, उद्देश्य पवित्र रखें|
सुन्दर सार्थक जीवन दर्शन। धन्यवाद।
ReplyDeleteसार्थक सन्देश ... आभाव में आनद लेना चाहिए ... वैसे तो हस स्थिति में यही होना चाहिए ... अच्छा लिखा है ..
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