♣♣♣ " ऊपर जिसका अंत नहीं उसे आसमां कहते हैं, और नीचे जिसका अंत नहीं उसे माँ कहते हैं..."

Thursday, 28 July 2011

"पापा! आप एक घंटें में कितना कमाते हैं"

वह महानगर की सिर खपाऊ नौकरी में लगा हुआ था | एक – एक मिनट की कीमत उसके लिए बहुत थी |
उसे तरक्की करनी थी | आगे जाना था | घर – परिवार के लिए सुख – सुविधाएँ जुटानी थी |
 आठ साल का उसका बेटा उससे कोई सवाल कर सके, ऐसे मौके कम ही आते थे |
जब तक वह लौट कर आता, बेटा सो चुका होता था या सोने की तैयारी कर रहा होता था |
पर उस दिन वह जगा हुआ था | दफ्तर से थका – मांदा लौटा पिता कपड़ें चेंज कर रहा था कि बेटा
अचानक पूछ बैठा, पापा ! आपको एक घंटा काम करने के कितने रुपये मिलते है ? सवाल अजीब था |
 वह चिढ गया | इतने छोटे से बच्चे को इससे क्या मतलब है कि उसके पिता को एक घंटे के लिए
 क्यामिलता है ? उसने झिड़क दिया, फालतू बाते नहीं करते, जाओ सो जाओ | बेटा अपने कमरे में चला गया |
 हाथ मुहं धोकर थोड़ा फ्रेश होने पर उसने सोचा, बेकार ही झिड़क दिया | बच्चा है, हो सकता है मन में कोई
 सवाल उठा हो, हो सकता है बड़ा होकर वह उससे भी ज्यादा कमाने का सपना देख रहा हो | हो सकता है उसे अपने
दोस्त के बीच डींग ही हांकनी हो | खाना खाने के बाद वह अपने बेटे के कमरे में गया | अभी वह सोया नहीं था |
कोई कहानी पढ़ रहा था | उसने प्यार से बेटे के सिर पर हाथ फेरा और बोला,”क्यों पूछ रहे थे ?” बच्चों को अपने
 पापा से ऐसी बातें नहीं पूछनी चाहिए | तुम्हे खेलना – कूदना चाहिए मन लगा कर पढ़ना चाहिए | जानना चाहते
 हो तो बता देता हूँ – मुझे एक घंटे के लिए पांच सौ रुपये मिलते हैं | पिता ने यूँ ही एक अच्छी सी रकम बता दी |
बेटा मुस्कराया, पर कोई जबाब नहीं दिया | पिता भी सोने चला गया | बात आई गई हो गई |
कुछ दिनों बाद पिता एक रोज फिर थका- मांदा घर लौटा | बेटा उस दिन भी जागा हुआ था |
पिता  को देखते ही उसने पूछा, पापा ! क्या मैं आपसे कुछ मांग सकता हूँ ? यह आसान था |
दिन भर थकने के बाद घर लौटने पर यदि बच्चे की कोई छोटी – मोटी फरमाइश पूरी कर उसे खुश किया
 जा सके तो अच्छा ही है | उसने तपाक से कहा, हाँ – हाँ बोलो, क्यां चाहिए ? बेटे ने कहा, क्या आप
मुझे तीन सौ रुपये दे सकते है? पिता के लिए यह मांग पूरी करना कोई मुस्किल नहीं था |
फिर भी उसे गुस्सा आया |  जेब खर्च से पूरा नहीं पड़ता क्या ? उसने झुझला कर जबाब दिया |
बिलकुल नहीं | क्या करोगे इतने रूपयों का |अभी पिछले ही महीने मम्मी ने साईकिल दिलवाई है |
पैसे पेड़ पर फलते हैं क्या ? बेटा रुआंसा होकर चुपचाप कमरे से बाहर निकल गया |
पिता रिलेक्स होने की कोशिश करने लगा | पर मन में हलचल थी | आखिर वह चाहता क्या है |
 क्या करेगा इतने पैसे का ? शायद प्यार से पूछना चाहिए कि क्यों मांग रहा है | खाना खाने के बाद वह
फिर बेटे के कमरे में पंहुचा | बेटा वहां नहीं था | वह उसका बिस्तर ठीक करने लगा | अचानक तकिये
केनीचे दस – दस पांच – पांच के कई नोट नजर आये | उसका माथा ठनका | ये कहाँ से आये ?
बेटा कही चोरी करना तो नहीं सीख गया | उसने जोर से आवाज लगाई | बेटा कमरे में आया |
उसने गुस्से में पूछा, ” ये रुपये कहा से आये ?” और इसके बावजूद तुम मुझसे तीन सौ
रुपये मांग रहे थे ? वह भीतर से उबल रहा था | जब वह बोल चुका तो बेटे ने धीमे से कहा,
 पापा, जेबखर्च से बचा कर दो सौ रुपये जमा कर लिए हैं | अगर तुम मुझे तीन सौ रुपये दे
 देते, तो कुल पांच सौ हो जाते | आपको दफ्तर वाले एक घंटे के इतने ही देते है ना |
तो उसके बदले में आपको पांच सौ रुपये दे देता और आप उस दिन एक घंटे जल्दी घर आ जाते |
 पापा, मैं एक दिन आपके साथ डिनर करना चाहता हूँ | बेटे कि बात सुनकर उसकी आँखों में
 आंसू आ गए |

"आर्थिक लक्ष्य का संधान करते – करते, हम अक्सर उन्हीं रिश्तों को हासिये
पर डाल देते हैं जो हमें सबसे प्रिय होते हैं |"

3 comments:

  1. यह कहानी मुझे बहुत अच्छी लगती है - लेकिन मैंने माँ के बारे में सुनी थी , पिता के नहीं .. | -यह मैंने कुछ महीनों पहले इस पोस्ट में कही थी .. http://ret-ke-mahal-hindi.blogspot.com/2011/01/blog-post_4008.html जिसमे मैंने कहा था कि आज्कल की भागती ज़िन्दगी कैसे हमें मानव से मशीन में बदल रही है ..

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  2. कहानिया तो सिर्फ जीवन को एक नयी दिशा प्रदान करने के लिए बनायीं जाती है जी! देखा जाये तो हर इंसान का जीवन एक उम्दा और रोचक कहानी है, सबसे बड़ा कहानीकार तो वो उपरवाला है|
    जहा तक मेरा ख्याल है, "मुंह बदलते ही किसी भी कहानी या ब्य्क्तब्य के मायने बदल ही जाते है." क्युकी हर शख्स की अपनी खुद की विचारधाराए होती है,
    बस कुछ लोग चाँद शब्दों में बड़ी बात कह जाते है, और कोई शब्दों के भवर जाल में फंसा रह जाता है|
    कहानी के पात्र बदलने या उसमे अन्य रोचक शब्दों के प्रयोग से सिर्फ कहानी की रोचकता बढती है, किन्तु अभिप्राय सदैव एक रहता है| चूँकि आप दुनिया के सर्वश्रेष्ठ पद पर आसीन है तो आप हमारे लिए सदैव पूज्यनीय है, और हम आपकी लेखनी को प्रणाम करते है|
    त्रुटियों के लिए क्षमाप्रार्थी,
    "आशु"

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  3. आर्थिक लक्ष्य का संधान करते – करते, हम अक्सर उन्हीं रिश्तों को हासिये
    पर डाल देते हैं जो हमें सबसे प्रिय होते हैं |"

    .
    Very true

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