♣♣♣ " ऊपर जिसका अंत नहीं उसे आसमां कहते हैं, और नीचे जिसका अंत नहीं उसे माँ कहते हैं..."

Monday 26 September 2011

बारिश की एक सर्द रात...



कोहनियों के ब़ल चलकर
चाँद आज कितना करीब आया है
कांच की खिड़की से सरकती
बारिश की बूंदों की
कतारें और शीशे के इस
पार भीगा हुआ मेरा मन
चांदनी में नहाये हुए कुछ ख्वाब
यादों की चादर भिगोने लगे
आँखों के समंदर में
घुलकर बह निकली एक
तम्मना तुमसे जुड़ने की 'आशु'
थरथराते होटों पे तुम्हारे
लबों का एहसास
एक गर्माहट से भर गयी
सर्द तूफानी रात
*************
-प्रस्तुतकर्ता
'आशु'

4 comments:

  1. बेहद उम्दा ख्याल।

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  2. प्रेममयी रचना अच्छी लगी , बधाई

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  3. धन्यवाद् Sir...

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  4. बहुत खूब .. परें की बूँदें चिटकी हुयी हैं ब्लॉग पर ...

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