♣♣♣ " ऊपर जिसका अंत नहीं उसे आसमां कहते हैं, और नीचे जिसका अंत नहीं उसे माँ कहते हैं..."

Sunday 21 August 2011

सनसनीखेज: क्या वाकई सरकार अन्ना के सामने झुक गई है ?....!!!!!

    म जानते हैं की समाज में जब भी परिवर्तन की नींव डालने की कोशिशे की गयी हैं, उसके विरोधाभाष में कुछ न कुछ समस्याए जरुर आई हैं | मैं यहाँ अन्ना जी, बाबा रामदेव या कांग्रेस का न ही समर्थन कर रहा हु और ना ही उनको विरोध | किन्तु एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही कि, क्या वाकई सरकार अन्ना के सामने झुक गई है ? 
और अगर ऐसी बात है तो फ़िर अनशन किसलिये हो रहा है ? 

सरकार अन्ना के जन लोकपाल को स्विकार क्यो नही करती ? 

15 दिन के बाद सरकार मान जायेगी ? 

15 दिन के बाद क्या होगा ? 

अगर सरकार 15 के दिन के बाद उनकी बात मान सकती है तो अब क्यो नही मान लेती ?

क्यों इतने बडे जन सैलाब को कष्ट दे रही है ?

 एक बात यह भी देखिये की, उसी रामलिल मैदान के लिये राजी है, जहां स्वामी रामदेव जी ने अनशन की इजाजत मांगी थी । यह दोगला व्यवहार क्यो ? 
निचे दिए गए पहलुओ पर तनिक विचार करें...
कि, कही हम इस जनलोकपाल के चक्कर में कालेधन का मुद्दा और कांग्रेस के घोटाले वाले कारनामे भुल न जाये। मुझे नही लगता की, आम गरीब किसान जो आत्महत्या करने के कगार पर आ चुका है, वह जन लोकपाल के पास जाकर शिकायत कर पायेगा या उसकी भुखमरी और बेरोजगारी मिट जायेगी।


लोकायुक्त पहले भी नियुक्त किये जा चुके है और भ्रष्ट्राचार निवारण एजन्सीयां बनी हुई है। कोई उनके पास शिकायत करने नही जाता। यही हाल लोकपाल के साथ होगा।

यहाँ एक बात तो स्पस्ट दिखती है सरकार ने बाबा रामदेव को ४ जून को दिल्ही से हरिद्वार पहुँचाकर मीडिया को भारत निर्माण के नाम से चुप कर दिया. सरकार चाहती तो अन्ना हजारे के विषय में मिडिया को चुप करा कर रोक सकती थी पर सरकार ने ही राम लला मैदान की साफ सफाई कराकर आन्दोलन को और भी सफल बनाया जबकि बाबा रामदेव के समय मैदान में टेंकर की मदत से पानी डाल कर कीचड़ बनाने का प्रयाश किया गया. दाल में जरुर कुछ काला है.    

मेरे जेहन में कुछ सवाल है कोई मेरे इन सवालो का जबाब दे सकता है तो कह सकते हैं की अन्ना का समर्थन जायज है............

१- क्यों अन्ना ने भारत माता की तस्बीर का अपमान करके दूसरी तस्बीर बनायीं? 

२- क्यों अन्ना बाबा को मंच पर ना आने की सलाह देता है?

३- क्यों नहीं अभी कोई कोंग्रेस्सी पिल्ला भोंक रहा है अन्ना पर? कहाँ गया दिग्गी?

४- क्यों मीडिया अन्ना के अनसन को अगस्त क्रांति का नाम दे रही है जबकि इसी मीडिया ने बाबा के अनसन को ढोंग साबित करके उन्हें ढोंगी करार दिया?

५- अन्ना को इतना जन समर्थन मिल रहा है तो क्यों नहीं वो स्वदेशी और काले धन (स्विस बेंक में जमा काला धन) को भारत में लाने की मांग कर रहे हैं.?

६- अगर अन्ना को भगवा से इतनी नफरत है तो क्यों उन्होंने देशद्रोही मौलाना अग्निवेश को अपनी टीम का सदस्य बनाया है और रामदेव को समर्थन ना करने की सलाह देते हैं.?

७- क्या कभी अन्ना ने किसी कोंग्रेस्सी को निशाना बनाया है?

८- क्यों अन्ना गुजरात में जाकर मोदी के शासन की उपेक्षया करते हैं: कहते है गुजरात में शराब की बाढ़ बहती है लेकिन महारास्ट्र में उनको शराब तक की बू नहीं आती है?

९- क्यों नहीं अन्ना महारास्ट्र में किसानो की हो रही आत्महत्या पर चुप बैठे हैं? क्यों नहीं वो महारास्ट्र  सरकार (कोंग्रेस) को आईना दिखा रहे हैं?

१०- क्यों ngo को लोकपाल बिल के दायरे में नहीं लाना चाहते हैं?

११- अन्ना ने अब भारत माता की फोटो हटाकर गाँधी की फोटो लगा दी है क्यों? वे भारत माता के साथ साथ गाँधी जी की और दुसरे क्रन्तिकारी की भी फोटो लगा सकते थे. पर इसके लिए भारत माता की फोटो हटाने की क्या जरुरत पड़ी.

अगर आप पिछले कुछ दिनों से आज तक जैसे चेनल पर गौर करेंगे तो पता चलेगा की कैसे किशी को हीरो बनाये और कैसे किसीको जीरो.

 मिडिया सम्पूर्ण रित से पैसो के लिए कार्य कर्ता है. यह वही दिखाता है जो सरकार चाहती है.

जब तक सम्पुर्ण व्यवस्था परिवर्तन के लिये आंदोलन नही होता और उसमे सफ़लता नही मिलती तब तक सत्ता पर बैठे हुए भेडिये जनता का युं ही खुंन चुंसते रहेंगे।

हमे हमारा ''भारत ''चाहिये,'' इण्डिया'' नही, जो वास्तव मे गांवों मे बसता है।

2 comments:

  1. सेकुलर गिरोह की एक दूसरे पर हावी होने की कोशिश भी हो सकता है ये सब ड्रामा||

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  2. बुख़ारी साहब का बयान इस्लाम के खि़लाफ़ है
    दिल्ली का बुख़ारी ख़ानदान जामा मस्जिद में नमाज़ पढ़ाता है। नमाज़ अदा करना अच्छी बात है लेकिन नमाज़ सिखाती है ख़ुदा के सामने झुक जाना और लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होना।
    पहले सीनियर बुख़ारी और अब उनके सुपुत्र जी ऐसी बातें कहते हैं जिनसे लोग अगर पहले से भी कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हों तो वे आपस में ही सिर टकराने लगें। इस्लाम के मर्कज़ मस्जिद से जुड़े होने के बाद लोग उनकी बात को भी इस्लामी ही समझने लगते हैं जबकि उनकी बात इस्लाम की शिक्षा के सरासर खि़लाफ़ है और ऐसा वह निजी हित के लिए करते हैं। यह पहले से ही हरेक उस आदमी को पता है जो इस्लाम को जानता है।
    लोगों को इस्लाम का पता हो तो इस तरह के भटके हुए लोग क़ौम और बिरादराने वतन को गुमराह नहीं कर पाएंगे।
    अन्ना एक अच्छी मुहिम लेकर चल रहे हैं और हम उनके साथ हैं। हम चाहते हैं कि परिवर्तन चाहे कितना ही छोटा क्यों न हो लेकिन होना चाहिए।
    हम कितनी ही कम देर के लिए क्यों न सही लेकिन मिलकर साथ चलना चाहिए।
    हम सबका भला इसी में है और जो लोग इसे होते नहीं देखना चाहते वे न हिंदुओं का भला चाहते हैं और न ही मुसलमानों का।
    इस तरह के मौक़ों पर ही यह बात पता चलती है कि धर्म की गद्दी पर वे लोग विराजमान हैं जो हमारे सांसदों की ही तरह भ्रष्ट हैं। आश्रमों के साथ मस्जिद और मदरसों में भी भ्रष्टाचार फैलाकर ये लोग बहुत बड़ा पाप कर रहे हैं।
    ये सारे भ्रष्टाचारी एक दूसरे के सगे हैं और एक दूसरे को मदद भी देते हैं।
    अन्ना हज़ारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन पर दिए गए अहमद बुख़ारी साहब के बयान से यही बात ज़ाहिर होती है।
    ब्लॉगर्स मीट वीकली 5 में देखिए आपसी स्नेह और प्यार का माहौल।

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