♣♣♣ " ऊपर जिसका अंत नहीं उसे आसमां कहते हैं, और नीचे जिसका अंत नहीं उसे माँ कहते हैं..."

Tuesday 17 January 2012

इस से पहले कि सजा मुझ को मुक़र्रर हो जाये ....


इस से पहले कि सजा मुझ को मुक़र्रर हो जाये 
उन हंसी जुर्मों कि जो सिर्फ मेरे ख्वाब में हैं ,
इस से पहले कि मुझे रोक ले ये सुर्ख सुबह 
जिस कि शामों के अँधेरे मेरे आदाब में हैं ,
अपनी यादों से कहो छोड़ दें तनहा मुझ को 
मैं परीशाँ भी हूँ और खुद में गुनाहगार भी हूँ 
इतना एहसान तो जायज़ है मेरी जाँ मुझ पर 
मैं तेरी नफरतों का पाला हुआ प्यार भी हूँ ...."


-डॉ. कुमार विश्वास

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